
जांजगीर-चांपा। छत्तीसगढ़ के छोटे से गांव खपरीडीह की निवासी श्रीमती प्रतिमा बाई सिदार की कहानी बताती है कि जब सरकारी योजनाएं ज़मीनी हकीकत से जुड़ती हैं, तब आम जन की ज़िंदगी वाकई बदलती है। एक समय ऐसा भी था जब बारिश की रातें उनके लिए भय और असुरक्षा लेकर आती थीं। मिट्टी की दीवारें, टपकती छत और विषैले जीवों का डर — यही था उनका जीवन। लेकिन आज वही महिला पक्के मकान में आत्मसम्मान के साथ जीवन बिता रही हैं।
अकेली महिला, लेकिन हौसले बुलंद
पति के निधन और बेटे की दुर्घटनामृत्यु ने जहां उनके जीवन को झकझोर दिया, वहीं उन्होंने हार नहीं मानी। दूसरा बेटा दूर जम्मू-कश्मीर में मजदूरी कर रहा है, फिर भी वह मां की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहा। प्रतिमा बाई ने खुद मेहनत-मजदूरी करके जीवन की गाड़ी खींची और तीन बेटियों की शादी कर एक मां के कर्तव्यों को पूरी निष्ठा से निभाया।
सरकार की योजनाओं ने बदली तस्वीर
प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) में नाम जुड़ते ही उनकी उम्मीदों को जैसे नए पंख मिल गए। स्थायी सूची में चयन और पहली किश्त की प्राप्ति के बाद उन्होंने पूरे परिवार के सहयोग से अपना पक्का घर बनवाया। अब यह घर सिर्फ रहने की जगह नहीं, बल्कि सुरक्षा, आत्मबल और गौरव का प्रतीक बन चुका है।
इसके अलावा उन्हें कई अन्य योजनाओं से भी लाभ मिला
• स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शौचालय
• विधवा पेंशन योजना से नियमित सहायता
• महतारी वंदना योजना के तहत ₹1000 की मासिक राशि
• मनरेगा के अंतर्गत 90 दिन की मजदूरी
संस्कृति के रंगों से सजा आत्मनिर्भरता का घर
प्रतिमा बाई ने अपने घर को पारंपरिक जनजातीय कला और प्रतीकों से सजाया है। उनका घर अब गांव में एक उदाहरण बन चुका है कि आत्मनिर्भरता कैसी दिखती है। यह चार दीवारें नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन बन चुका है।
प्रतिमा बाई भावुक होकर कहती हैं
“यह घर मेरे जीवन की सबसे बड़ी सौगात है। अब मुझे डर नहीं लगता। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जी ने जैसे मेरा जीवन ही बदल दिया। मैं उनका तहेदिल से धन्यवाद करती हूं।”