
✍️ मनोज शर्मा
पामगढ़ विधायक शेषराज हरबंस पर रेत माफिया से सांठगांठ के आरोपों ने छत्तीसगढ़ की राजनीति को एक बार फिर कठघरे में खड़ा कर दिया है। सोशल मीडिया पर वायरल एक कथित ऑडियो क्लिप ने न केवल विधायक की साख पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर छाया डाली है।
यदि इस ऑडियो में की गई बातें सत्य हैं, तो यह महज एक विधायक का निजी भ्रष्टाचार नहीं है, बल्कि सत्ता और प्रशासनिक तंत्र के गठजोड़ की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसकी बानगी है। कलेक्टर और एसडीएम जैसे उच्च पदस्थ अधिकारियों के नाम पर सौदेबाजी का जिक्र इस पूरे तंत्र को ही संदेह के घेरे में ले आता है। और यदि यह ऑडियो फर्जी है, तो यह उतना ही चिंताजनक है। क्योंकि इसका अर्थ है कि अब राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का स्तर इतना नीचे गिर चुका है कि विरोधियों को बदनाम करने के लिए इस तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।
रेत का अवैध कारोबार छत्तीसगढ़ में नया मुद्दा नहीं है। यह करोड़ों के मुनाफे का धंधा है, जिसमें स्थानीय ठेकेदारों से लेकर बड़े नेताओं तक की संलिप्तता की चर्चाएं समय-समय पर होती रही हैं। यह कारोबार न केवल प्राकृतिक संसाधनों की लूट है, बल्कि ग्रामीण अंचलों में कानून व्यवस्था और आम लोगों की आजीविका पर भी सीधा प्रहार करता है। सवाल यह है कि इस गोरखधंधे पर नकेल कसने की जिम्मेदारी किसकी है? और आखिर क्यों राजनीतिक संरक्षण के बिना यह धंधा फल-फूल रहा है?
अब गेंद सरकार और जांच एजेंसियों के पाले में है। महज प्रेस वार्ता और बयानों से जनता संतुष्ट नहीं होगी। सच सामने लाने के लिए निष्पक्ष, पारदर्शी और समयबद्ध जांच आवश्यक है। यदि विधायक दोषी पाए जाते हैं, तो कठोरतम कार्रवाई होनी चाहिए। और यदि यह ऑडियो साजिश साबित होता है, तो इसके पीछे की ताकतों का पर्दाफाश भी उतना ही जरूरी है।
जनता अब सिर्फ़ बहाने नहीं, जवाब चाहती है। रेत की लूट सिर्फ़ एक कारोबारी मुद्दा नहीं, बल्कि शासन की नीयत और राजनीति की सच्चाई का आईना है।

